Shree Hanuman Stavan-श्री हनुमान स्तवन
श्री हनुमान स्तवन भगवान हनुमानजी को समर्पित एक पवित्र प्रार्थना है। हनुमानजी, जिन्हें हम पवनपुत्र, अंजनिपुत्र ,संकटमोचन ,बजरंग बलि जैसे नामसे पुकारते है वो भक्ति, साहस और शक्ति का प्रतिक माने जाते हैं। संस्कृत में रचित, Shree Hanuman Stavan भगवान हनुमानजी के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा की एक गीतात्मक अभिव्यक्ति है। हनुमान स्तवन भगवान हनुमान के दिव्य गुणों पर प्रकाश डालता है और भगवान राम की सेवा में उनके वीरतापूर्ण कार्यों की प्रशंसा करता है। श्री हनुमान स्तवन के छंद हनुमानजी की शक्ति, उनकी अटूट निष्ठा और निस्वार्थ रूप से भगवान राम की सेवा करने के लिए उनके अटूट समर्पण का खूबसूरती से वर्णन करता है। प्रत्येक श्लोक भगवान हनुमान के व्यक्तित्व के अलग अलग पहलू को दर्शाता है, उनकी असाधारण क्षमताओं और उनकी गहरी भक्ति पर जोर देता है।
हनुमान स्तवन बुरी और नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ एक रक्षक के रूप में हनुमान की भूमिका का भी उल्लेख करता है। श्री हनुमान स्तवन का पाठ करने या जप करने से अनगिनत आशीर्वाद मिलते है और भक्त के भीतर साहस और आत्मविश्वास जागता होता है। हनुमान स्तवन भय को कम करता है और शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की बाधाओं को दूर करने की शक्ति प्रदान करता है।Shree Hanuman Stavan Lyrics
सोरठा :
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम ।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।
श्रीहनुमन्नमस्कार :
गोष्पदी-कृत-वारिशं मशकी-कृत-राक्षसम।
रामायण-महामाला-रत्नं वंदेनिलात्मजम।।
अञ्जना -नन्दनं -वीरं जानकी -श्लोक -नाशनम।
कपीशमक्ष -हन्तारं वन्दे लङ्का -भयङ्क रम।।
महा -व्याकरणाम्भोधि -मन्थ -मानस -मन्दरम।
कवयन्तं राम -कीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे।।
उल्लङघ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं
यः शोक -वह्निं जनकात्मजायाः।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां
नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम।।
मनोजवं मारुत -तुल्य -वेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम।
वातात्मजं वानर -यूथ -मुख्यं
श्रीराम -दूतं शिरसा नमामि।।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्जनाद्री -कमनीय -विग्रहम।
पारिजात -तरु -मूल -वासिनं
भावयामि पवमान -नन्दनम।।
यत्र यत्र रघुनाथ -कीर्तनं
तत्र तत्र कृत -मस्तकाञ्जलिम।
बाष्प -वारी -परिपूर्ण -लोचनं
मारुतिर्नमत राक्षसान्तकम।।
हनुमान स्तवन अर्थ :
मैं उन पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं ,जो दुष्ट रूपी वन में अर्थात राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय रूपी घर में धनुषधारी श्री राम निवास करते हैं।
अतुलित बल के निवास ,हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले राक्षस रूपी वन लिए अग्नि के समान ,ज्ञानियों के अग्रणी रहने वाले ,समस्त गुणों के भंडार ,वानरों के स्वामी ,श्री राम केप्रिय भक्त वायुपुत्र श्री हनुमान जी को नमस्कार करता हूँ ।
समुद्र को गाय के खुर के समान संक्षिप्त बना देने वाले ,राक्षसों को मच्छर जैसा बनाने वाले ,रामायण रूपी महती माला का रत्न वायुनंदन हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ ।
माता अंजनी को प्रसन्न रखने वाले ,माता सीता जी के शोक को नष्ट करने वाले ,अक्ष को मारने वाले ,लंका के लिए भयंकर रूप वाले वानरों के स्वामी को प्रणाम करता हूँ ।
जिन्होंने समुद्र के जल को लीला पूर्वक (खेल -खेल में )लांघ कर माता सीता जी की शोकरूपी अग्नि को लेकर उस अग्नि से ही लंका दहन कर दिया ,उन अंजनी पुत्र को मैं हाथ जोड़ कर नमस्कार करता हूँ।
मन के समान गति वाले ,वायु के समान वेग वाले ,इंद्रियों के समान सुंदर शरीर वाले ,कल्पवृक्ष कीजड़ पर रहने वाले ,पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं याद करता हूँ।
जहाँ -जहाँ श्री रामचंद्र जी का कीर्तन होता है वहां -वहां मस्तक पर अंजलि बांधे हुए आनंदाश्रु से पूरित नेत्रों वाले ,राक्षसों के काल वायुपुत्र (श्री हनुमान जी ) को नमस्कार करें।
Shree Hanuman Stavan Video
आपने अभी "श्री हनुमान स्तवन" के बोल (Lyrics) इस लेख में देखे हैं, इस भक्तिपूर्ण और आध्यात्मिक स्तोत्र से सबंधित अन्य देवतावों के स्तोत्र निचे दिये गये हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन स्तोत्र को भी देखें.
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