Ramraksha Stotra-रामरक्षा स्तोत्र
रामरक्षा स्तोत्र एक प्रसिद्ध संकटमोचन स्तोत्र है, जिसे ऋषि बुधकौशिक द्वारा संदर्भित किया गया है। जिन्हें हम ऋषि विश्वामित्र के नाम से भी जानते है। Ramraksha Stotra एक संस्कृत स्तोत्र है जिसका उपयोग सुरक्षा के लिए प्रार्थना के रुप में किया जाता है। इसका पठन करने से मनुष्य की शारीरिक और आध्यात्मिक सुरक्षा बढ़ती है और अशुभ शक्तियों और संकटों से मुक्ति मिलती है।
रामरक्षा स्तोत्र को प्रतिदिन अध्ययन करने से संकटों का नाश होता है और जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है। इसे भक्ति एवं आध्यात्मिक अभ्यास का हिस्सा माना जाता है। रामरक्षा स्तोत्र का पठन करने से प्रभु श्रीराम की कृपा मिलती है और ऐसा माना जाता है की इसके पठन से प्राकृतिक आपदाओं, रोगों, तांत्रिक शक्तियों, विपरीत प्रेत -प्रेतात्माओं और राक्षसों से सुरक्षा मिलती है। यह एक प्राचीन और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो अनेक भक्तों द्वारा नियमित रुप से पढ़ा जाता है।रामरक्षास्तोत्रम
'रामरक्षाकवच 'की सिद्धिकी विधि
नवरात्रमें प्रतिदिन नौ दिनोंतक ब्राह्म -मुहूर्तमें नित्य -कर्म तथा स्त्रानादीसे निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारणकर कुशाके आसनपर सुखासन लगाकर बैठ जाइये। भगवान श्रीरामके कल्याणकारी स्वरूपमें चित्तको एकाग्र करके इस महान फलदायी स्त्रोत्रका कम -से -कम ग्यारह बार और यदि यह न हो सके तो सात बार नियमित रूपसे प्रतिदिन पाठ कीजिये। पाठ करनेवालेकी श्रीरामकी शक्तियोंके प्रति जितनी अखण्ड श्रद्धा होगी ,उतना ही फल प्राप्त होगा। वैसे 'रामरक्षाकवच 'कुछ लंबा है ,पर इस संक्षिप्तरूपसे भी काम चल सकता है। पूर्ण शान्ति और विश्वाससे इसका जाप होना चाहिये ,यहाँ तक की यह कण्ठस्थ हो जाय।
विनियोगः
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप छन्द:सीता शक्तिः श्रीमान हनुमान कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोत्रजपे विनियोगः।
इस रामरक्षास्त्रोत -मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हैं ,सीता और रामचंद्र देवता हैं ,अनुष्टुप छन्द है ,सीता शक्ति हैं ,श्रीमान हनुमानजी किलक हैं तथा श्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नताके लिये रामरक्षास्त्रोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है।
ध्यानम
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्यासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम। वामाङ्कारूढसितमुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम।।
जो धनुष -बाण धारण किये हुए हैं ,बद्ध पद्यासनसे विराजमान हैं ,पीताम्बर पहने हुए हैं ,जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदलसे स्पर्धा करते तथा वामभागमें विराजमान श्रीसीताजीके मुखकमलसे मिले हुए हैं ,उन आजानुबाहु ,मेघश्याम ,नाना प्रकारके अलंकारोंसे विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचंद्रजीका ध्यान करे।
स्त्रोत्रम
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम।।१।।
श्रीरघुनाथजीका चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक -एक अक्षर भी मनुष्योंके महान पापोंको नष्ट करनेवाला है ।।१।।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम। जानकिलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमन्डितम ।।२।।
सासितुणधनुर्बाणपाणीं नक्तंचरान्तकम। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम ।।३।।
रामरक्षां: पठेत्प्राज्ञ: पपन्धिं सर्वकामदाम। शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ।।४।।
जो नीलकमलके समान श्यामवर्ण ,कमल -नयन ,जटाओंके मुकुटसे सुशोभित ,हाथोंमें खङ्ग ,तूणीर ,धनुष और बाण धारण करनेवाले राक्षसोंके संहारकारी तथा संसारकी रक्षाके लिये अपनी लीलसे ही अवतीर्ण हुए हैं ,उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान रामका जानकी और लक्ष्मणजीके सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनि रामरक्षाका पाठ करे। मेरी सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें।।२-४।।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।५।।
कौसल्यानंदन नेत्रोंकी रक्षा करें ,विश्वामित्रप्रिय कानोंको सुरक्षित रक्खें तथा यज्ञरक्षक घ्राणकी और सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ।।५।।
जिह्नां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ।।६।।
मेरी जिह्नाकी विद्यानिधि ,कण्ठकी भरतवन्दित ,कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक (महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले )रक्षा करें ।।६।।
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ।।७।।
हाथोंकी सीतापति ,हृदयकी जामदग्न्यजित (परशुरामजिको जीतनेवाले ),मध्यभागकी खरध्वंसी (खर नामके राक्षसका नाश करनेवाले )और नाभिकी जाम्बवदाश्रय (जाम्बवानके आश्रयस्वरूप )रक्षा करें ।।७।।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।ऊरु रघुत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत ।।८।।
कमरकी सुग्रीवेश (सुग्रीवके स्वामी ),सक्थियोंकी हनुमत्प्रभु और ऊरुओंकी राक्षसकुल -विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ।।८।।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोखिलं वपुः ।।९।।
जानुओंकी सेतुकृत ,जङ्घाओंकी दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले ),चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले )और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ।।९।।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत ।।१०।।
जो पुण्यवान पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है ,वह दीर्घायु ,सुखी ,पुत्रवान ,विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है ।।१०।।
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शत्कास्ते रक्षितं रामनामभिः ।।११।।
जो जीव पाताल ,पृथ्वी अथवा आकाशमें विचरते हैं और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं ,वे रामनामोंसे सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ।।११।।
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन। नरो न लिप्यते पापैर्भुत्किं मुत्किं च विन्दति ।।१२।।
'राम ','रामभद्र ','रामचंद्र '----इन नामोंका स्मरण करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।।१२।।
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम। यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ।।१३।।
जो पुरुष जगतको विजय करनेवाले एकमात्र मंत्र रामनामसे सुरक्षित इस स्त्रोत्रको कण्ठमें धारण करता है (अर्थात इसे कण्ठस्थ कर लेता है ),सम्पूर्ण सिध्दियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ।।१३।।
वज्रपञ्जर नामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम ।।१४।।
जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवचका स्मरण करता है ,उसकी आज्ञाका कहीं उल्लङ्घन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मङ्गलकी प्राप्ति होती है ।।१४।।
आदिष्टवान्यथा स्वप्रे रामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवाप्नातः प्रबुध्दो बुधकौशिकः ।।१५।।
श्रीशंकरने रात्रिके समय स्वप्नमें इस रामरक्षाका जिस प्रकार आदेश दिया था ,उसी प्रकार प्रातःकाल जागनेपर बुधकौशिकने इसे लिख दिया ।।१५।।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ।।१६।।
जो मानो कल्पवृक्षोंके बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियोंका अन्त करनेवाले हैं ,जो तीनों लोकोंमें परम सुन्दर हैं ,वे श्रीराम राम हमारे प्रभु हैं ।।१६।।
तरुणौ रुपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चिरकृष्णाजीनाम्बरौ ।।१७।।
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।।१८।।
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम। रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ।।१९।।
जो तरुण अवस्थावाले ,रूपवान ,सुकुमार ,महाबली ,कमलके समान विशाल नेत्रोंवाले ,चिरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी ,फल-मूल आहार करनेवाले ,संयमी ,तपस्वी ,ब्रह्मचारी ,सम्पूर्ण जीवोंको शरण देनेवाले ,समस्त धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ और राक्षसकुलका नाश करनेवाले हैं ,वे रघुश्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।।१७ -१९।।
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा -वक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा -वग्रत:पथि सदैव गच्छताम ।।२०।।
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रक्खा है ,जो बाणका स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणोंसे युक्त तूणीर लिये हुए हैं ,वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करनेके लिये मार्गमें सदा ही मेरे आगे चलें ।।२०।।
संनध्द: कवची खङ्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ।।२१।।
सर्वदा उद्यत ,कवचधारी ,हाथमें खङ्ग लिये ,धनुष -बाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाले भगवान राम लक्ष्मणजीसहित आगे -आगे चलकर हमारे मनोरथोंकी रक्षा करें ।।२१।।
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः ।।२२।।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः। जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ।।२३।।
इत्येतानि जपन्नित्यं मभ्दक्तः श्रध्दयान्वितः।अश्र्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्रोति न संशयः ।।२४।।
(भगवानका कथन है कि )राम ,दाशरथि ,शुर ,लक्ष्मणानुचर ,बली ,काकुत्स्थ ,पुरुष ,पूर्ण ,कौसल्येय ,रघुत्तम ,वेदान्तवेद्य ,यज्ञेश ,पुराणपुरुषोत्तम ,जानकीवल्लभ ,श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम ---इन नामका नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेसे मेरा भक्त अश्वमेधयज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त करता है ---इसमें कोई सन्देह नहीं है ।।२२ -२४।।
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पितवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ।।२५।।
जो लोग दुर्वादलके समान श्यामवर्ण ,कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान रामका इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं ,वे संसारचक्रमें नहीं पड़ते ।।२५।।
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम।।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।।२६।।
लक्ष्मणजीके पूर्वज ,रघुकुलमें श्रेष्ठ ,सीताजीके स्वामी ,अतिसुन्दर ,ककुत्स्थकुलनन्दन ,राजराजेश्वर ,सत्यनिष्ठ ,दशरथपुत्र ,श्याम और शान्तमूर्ति ,सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर ,रघुकुलतिलक ,राघव और रावणारि भगवान रामकी मैं वन्दना करता हूँ ।।२६।।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।।२७।।
राम ,रामभद्र ,रामचन्द्र ,विधातृस्वरूप ,रघुनाथ ,प्रभु सीतापतिको नमस्कार है ।।२७।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।२८।।
हे रघुनन्दन श्रीराम !हे भरताग्रज भगवान राम !हे रणधीर प्रभु राम !आप मेरे आश्रय होइये ।।२८।।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।।२९।।
मैं श्रीरामचन्द्रके चरणोंका मनसे स्मरण करता हूँ ,श्रीरामचन्द्रके चरणोंका वाणीसे कीर्तन करता हूँ ,श्रीरामचन्द्रके चरणोंको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्रके चरणोंकी शरण लेता हूँ ।।२९।।
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु -र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ।।३०।।
राम मेरी माता हैं ,राम मेरे पिता हैं ,राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं ,उनके सिवा और किसको मैं नहीं जानता ---बिल्कुल नहीं जानता ।।३०।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम ।।३१।।
जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी ,बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं ,उन रघुनाथजीकी मैं वन्दना करता हूँ ।।३१।।
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ।।३२।।
जो सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर ,रणक्रीडामें धीर ,कमलनयन ,रघुवंशनायक ,करुणामूर्ति और करूणाके भण्डार हैं ,उन श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ।।३२।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।३३।।
जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है ,जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं ,उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मैं शरण लेता हूँ ।।३३।।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ।।३४।।
कवितामयी डालीपर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले राम -राम इस मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकिरुप कोकिलकी मैं वन्दना करता हूँ ।।३४।।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम ।।३५।।
आपत्तियोंको हरनेवाले तथा सब प्रकारकी सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान रामको मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ ।।३५।।
भर्जनं भवबिजानामर्जनं सुखसम्पदाम। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम ।।३६।।
'राम -राम 'ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसारबीजोंको भून डालनेवाला ,समस्त सुख -सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतोंको भयभीत करनेवाला है ।।३६।।
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ।।३७।।
राजाओंमें श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान रामका भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था ,मैं उनको प्रणाम करता हूँ। रामसे बड़ा और कोई आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे ;हे राम !आप मेरा उद्धार कीजिये ।।३७।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।३८।।
(श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं ---)हे सुमुखि !रामनाम विष्णुसहस्त्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा 'राम ,राम ,राम 'इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही रमण करता हूँ ।।३८।।
। इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्त्रोत्रं सम्पूर्णम।
Ramraksha Stotra Video
आपने अभी "रामरक्षा स्तोत्र" के बोल (Lyrics) इस लेख में देखे हैं, इस भक्तिपूर्ण और आध्यात्मिक स्त्रोत्र से सबंधित अन्य देवतावों के स्तोत्र निचे दिये गये हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन स्तोत्र को भी देखें.
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