Ramayan Manka 108-रामायण मनका १०८
रामायण मनका रामायण के महत्वपूर्ण घटनाओं और कथाओं को संगीतमय तरीके से संक्षेप में व्यक्त करता है जो सभी राम भक्तों द्वारा रोजाना जपा जाता है। Ramayan Manka 108 चौपाइयों का संग्रह है जिसमें रामायण की मूल कथा, रामचंद्रजी के गुणों, लक्ष्मण और हनुमान के महत्वपूर्ण भूमिका, सीताजी की प्रतिष्ठा और रावण के विनाश की कथाएं शामिल हैं। इस मनका का जाप रामायण जी की आराधना, भक्ति बढ़ाने का एक अद्वितीय तरीका है।
रामायण मनका के जप से वैदिक और पौराणिक दोनों प्रकार की शक्ति प्राप्त होती है। यह जप श्रद्धा, ध्यान शक्ति और उन्नति को प्राप्त करने में मदद करता है। यह मंत्र राम भक्ति में गहरा रंग भरता है और चैतन्य की अनुभूति को बढ़ाता है। रामायण मनका १०८ जपने से व्यक्ति के मन को शांति मिलती है और उसके मन की इच्छाए पूरी होती हैं।Ramayan Manka 108 Lyrics
बीर पड़ी भक्तों ने पुकारा। कष्ट हरो प्रभु आप हमारा।
शुभ दशरथ घर जन्मे राम। पतितपावन सीताराम।।१।।
विश्वामित्र मुनीश्वर आये। दशरथ राज को वचन सुनाये।।
संग में भेजे लक्ष्मण राम। पतितपावन सीताराम।।२।।
वन में जाय ताड़का मारी। गौतमनार अहिल्या तारी।।
ऋषि मुनि के भये पूरण काम। पतितपावन सीताराम।।३।।
जनकपुरी रघुनन्दन आये। नगर निवासी दर्शन पाये।।
सीतो के मन भाये राम। पतितपावन सीताराम।।४।।
रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया। सब राजों का मान वटाया।।
सीता ने वर पाये राम। पतितपावन सीताराम।।५।।
परशुराम क्रोधित हो आये। दुष्ट भूप मन में हरषाये।।
जनक राज ने किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।६।।
बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी। संत नहीं होते अभिमानी।।
मीठी बाणी बोले राम। पतितपावन सीताराम।।७।।
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो। जो कुछ दण्ड दास को दीजो।।
धनुष तुड़ैय्या मैं हूँ राम। पतितपावन सीताराम।।८।।
लेकर तुम यह धनुष चढ़ाओ। अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ।।
छुवत चाप चढ़ाये राम। पतितपावन सीताराम।।९।।
हुई उर्मिला लखन की नारी। श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी।।
हुई माण्डवी भरत के वाम। पतितपावन सीताराम।।१०।।
अवधपुरी रघुनन्दन आये। घर -घर नारी मंगल गाये।।
घर घर होते मंगला चार। पतितपावन सीताराम।।११।।
गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी। राज तिलक तैयारी कीनी।।
कल को होंगे राजा राम। पतितपावन सीताराम।।१२।।
कुटिल मंथरा ने बहकायी। कैकइ ने यह बात सुनाई।।
दे दो मेरे दो वरदान। पतितपावन सीताराम।।१३।।
मेरी विनती तुम सुन लीजो। पुत्र भरत को गद्दी दीजो।।
होत प्रातः वन भेजो राम। पतितपावन सीताराम।।१४।।
धरनी गिरे भूप ततकाला। लागा दिल में शूल विशाला।।
तब सुमंत बुलवाये राम। पतितपावन सीताराम।।१५।।
राम पिता को शीश नवाये। मुख से वचन कहा नहीं जाये।।
कैकइ वचन सुनाये राम। पतितपावन सीताराम।।१६।।
राजा के तुम प्राण पियारे। इनके दुःख हरोगे सारे।।
अब तुम वन में जाओ राम। पतितपावन सीताराम।।१७।।
वन में चौदह वर्ष बिताओ। रघुकुल रीती -नीति अपनाओ।।
आगे इच्छा तेरी राम। पतितपावन सीताराम।।१८।।
सुनत वचन राघव हर्षाए। माताजी के मन्दिर आये।।
चरण कमल में किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।१९।।
माताजी मैं तो वन जाऊँ। चौदह वर्ष बाद फिर आऊँ।।
चरण कमल देखूं सुख धाम। पतितपावन सीताराम।।२०।।
सुनी शुलसम जब यह बानी। भू पर गिरी कौशल्यारानी।।
धीरज बांध रहे श्रीराम। पतितपावन सीताराम।।२१।।
समाचार सुनि लक्ष्मण आये। धनुष बाण संग परम सुहाये।।
बोले संग चलूंगा राम। पतितपावन सीताराम।।२२।।
सीताजी जब यह सुन पाई। रंगमहल से नीचे आयी।।
कौशल्या को किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।२३।।
मेरी चूक क्षमा कर दीजो। वन जाने की आज्ञा दीजो।।
सीता को समझाते राम। पतितपावन सीताराम।।२४।।
मेरी सीख सिया सुन लीजो। सास ससुर की सेवा कीजो।।
मुझको भी होगा विश्राम। पतितपावन सीताराम।।२५।।
मेरा दोष बता प्रभु दीजो। संग मुझे सेवा में लीजो।।
अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम। पतितपावन सीताराम।।२६।।
राम लखन मिथिलेश कुमारी। वन जाने की करी तैयारी।।
रथ में बैठ गये सुख धाम। पतितपावन सीताराम।।२७।।
अवधपुरी के सब नर नारी। समाचार सुन व्याकुल भारी।।
मचा अवध में अति कोहराम। पतितपावन सीताराम।।२८।।
श्रृंगवेरपुर रघुवर आये। रथ को अवधपुरी लौटाये।।
गंगा तट पर आये राम। पतितपावन सीताराम।।२९।।
केवट कहे चरण धुलवाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ।।
पत्थर कर दी नारी राम। पतितपावन सीताराम।।३०।।
लाया एक कटौरा भारी। चरण कमल धोये सुखकारी।।
नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम। पतितपावन सीताराम।।३१।।
उतराई में मुंदरी दीनी। केवट ने यह विनती कीनी।।
उतराई नहीं लूंगा राम। पतितपावन सीताराम।।३२।।
तुम आये हम घाट उतारे। हम आयेंगे घाट तुम्हारे।।
तब तुम पार लगइओ राम। पतितपावन सीताराम।।३३।।
भरद्वाज आश्रम पर आये। राम लखन ने शीश नवाए।।
एक रात कीन्हां विश्राम। पतितपावन सीताराम।।३४।।
भाई भरत अयोध्या आये। कैकयी को कटु वचन सुनाये।।
क्यों तुमने वन भेज राम। पतितपावन सीताराम।।३५।।
चित्रकूट रघुनंदन आए। वन को देख सिया सुख पाय।।
मिले भरत से भाई राम ,पतितपावन सीताराम।।३६।।
अवध पूरी को चलिए भाई। यह सब कैकइ की कुटिलाई।।
तनिक दोष नहीं मेरा राम। पतितपावन सीताराम।।३७।।
आगे चले राम रघुराया। निशाचरों का वंश मिटाया।।
ऋुषि मुनि के भये पूरण काम। पतितपावन सीताराम।।३८।।
चरण पादुका तुम ले लीजो। दर्शन करके पूजा कीजो।।
भरत को कंठ लगाये राम। पतितपावन सीताराम।।३९।।
जनस्थान आए रघुराई। शूर्पनखा की नाक कटाई।।
खरदूषण को मारे राम। पतितपावन सीताराम।।४०।।
रावण पापी का अंत आया। मारीच को मृग बनवाया।
छलकर लिनी जानकी राम। पतितपावन सीताराम।।४१।।
पंचवटी रघुनन्दन आए। कनक मृग मारीच संग धाये।।
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम। पतितपावन सीताराम।।४२।।
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठाई।।
सुनी लुटिया देखी राम। पतितपावन सीताराम।।४३।।
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलताई।।
हे प्रिय सीते ,चीखे राम। पतितपावन सीताराम।।४४।।
लक्ष्मण ,सीता छोड़ नहीं आते। जनक दुलारी नहीं गंवाते।।
तुमने सभी बिगाड़े काम। पतितपावन सीताराम।।४५।।
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते।।
लगे चाँदनी जैसे धाम। पतितपावन सीताराम।।४६।।
सुनरी मैना ,सुन रेतोता। मैं जो पंखों वाला होता।।
वन वन लेता ढूँढ़ तमाम। पतितपावन सीताराम।।४७।।
सुनो गुलाब ,चमेली ,जूही। चम्पा मुझे बता दे तू ही।।
सीता कहाँ ,पुकारे राम। पतितपावन सीताराम।।४८।।
नाग सुनो मेरे मन हारी। कहीं देखी हो जनक दुलारी।।
तेरी जैसी चोटी श्याम। पतितपावन सीताराम।।४९।।
श्यामा हिरनी तूं ही बतादे। जनक नंदनी मुझे मिला दे।।
तेरे जैसी आँखें श्याम। पतितपावन सीताराम।।५०।।
हे अशोक ,मम शोक मिटा दे। चन्द्रमुखी से मुझे मिला दे।।
होगा तेरा सच्चा नाम। पतितपावन सीताराम।।५१।।
बन बन ढूँढ़ रहे रघुराई। जनक दुलारी कहीं न पाई।।
गिद्धराज ने किया प्रणाम।पतितपावन सीताराम।।५२।।
चख चख कर शबरीलाई। प्रेम सहित पाये रघुराई।।
ऐसे मीठे नहीं है आम। पतितपावन सीताराम।।५३।।
विप्र रूप धरि हनुमत आए। चरण कमल में शीश नवाये।।
कन्धे पर बैठाये राम। पतितपावन सीताराम।।५४।।
सुग्रीव से करी मिलाई। अपनी सारी कथा सुनाई।।
बाली पहुँचाया निज धाम। पतितपावन सीताराम।।५५।।
सिहासन सुग्रीव बिठाया ,मन में वह भारी पछिताया।।
वर्षा ऋतु आई हे राम। पतितपावन सीताराम।।५६।।
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ। वानर -पति को यूँ समझाओ।।
सीता बिन व्याकुल हैं राम। पतितपावन सीताराम।।५७।।
देश देश वानर भिजवाए। सागर के सब तट पर आये।।
सहते भूख प्यास और धाम। पतितपावन सीताराम।।५८।।
सम्पाती ने पता बताया। सीता को रावण हर लाया।।
सागर कूद गए हनुमान।पतितपावन सीताराम।।५९।।
कोने कोने पता लगाया। भगत विभीषण का घर पाया।।
हनुमान को किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।६०।।
हनुमान उपवन में आए। वृक्ष तले सीता को पाये।।
आँसू बरसे आठों याम। पतितपावन सीताराम।।६१।।
रावण संग निशाचरीलाके। सीता को बोला समझाके।।
मेरी और तुम देखो वाम। पतितपावन सीताराम।।६२।।
मन्दोदरी बनाउं दासी। सब सेवा में लंका वासी।।
करो भवन चलकर विश्राम। पतितपावन सीताराम।।६३।।
चाहे मस्तक कटे हमारा। मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा।।
मेरे तन मन धन हैं राम। पतितपावन सीताराम।।६४।।
ऊपर से मुद्रिका गिराई। सीता जी ने कंठ लगाई।।
हनुमान ने किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।६५।।
मुझको भेजे रघु राया। सागर कूद यहाँ मैं आया।।
मै हूँ राम भक्त हनुमान। पतितपावन सीताराम।।६६।।
माता की आज्ञा मैं पाऊँ। भूख लगी मीठे फल खाउँ।।
पीछे मैं लूँगा विश्राम।पतितपावन सीताराम।।६७।।
वृक्षों को मत हाथ लगाना। भूमि गिरे मधुर फल खाना।।
निशाचरों का है यह धाम। पतितपावन सीताराम।।६८।।
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े। देख देख माली ललकारे।।
मार -मार पहुँचाये धाम। पतितपावन सीताराम।।६९।।
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया। इन्द्रजीत फाँसी ले आया।।
ब्रह्मफाँस से बंधे हनुमान। पतितपावन सीताराम।।७०।।
सीता को तुम लौटा दीजो। उन से क्षमा याचना कीजो।।
तीन लोक के स्वामी राम। पतितपावन सीताराम।।७१।।
भगत विभीषण ने समझाया। रावण ने उसको धमकाया।।
सनमुख देख रहे हनुमान। पतितपावन सीताराम।।७२।।
रुई ,तेल ,घृत ,वसन मंगाई। पूँछ बाँध कर आग लगाई।।
पूँछ घुमाई है हनुमान। पतितपावन सीताराम।।७३।।
सब लंका में आग लगाई। सागर में जा पूँछ बुझाई।।
हृदय कमल में राखे राम। पतिपवान सीताराम।।७४।।
सागर कूद लौट कर आये। समाचार रघुवर ने पाये।।
जो मांगा सो दिया वरदान। पतितपावन सीताराम।।७५।।
वानर रीछ संग में लाए। लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए।।
लगे सुखाने सागर राम। पतितपावन सीताराम।।७६।।
सेतु कपि नल नील बनावें। राम -राम लिख सिला तिरावे।।
लंका पहुँचे राजा राम। पतितपावन सीताराम।।७७।।
निशाचरों की सेना आई। गरज -तरज कर हुई लड़ाई।।
वानर बोले जय सिया राम। पतितपावन सीताराम।।७८।।
मेघनाथ ने शक्ति चलाई। लछ्मण जी को मूर्छा आई।।
चिंता करके रोये राम। पतितपावन सीताराम।।७९।।
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय पिता ने प्राण गंवाया।।
वन में गई चुराई वाम। पतितपावन सीताराम।।८०।।
भाई तुमने भी छिटकाया।जीवन में कुछ सुख नहीं पाया।।
सेना में भारी कोहराम। पतितपावन सीताराम।।८१।।
जो संजीवनी बूटी को लाए। तो भाई जीवित हो जाये।।
लावो संजीवनी हनुमान। पतितपावन सीताराम।।८२।।
जब बूटी का पता ना पाया। पर्वत ही लेकर के आया।।
कालनेमि पहुँचाया धाम। पतितपावन सीताराम।।८३।।
भक्त भरत ने बाण चलाया। चोट लगी हनुमत लंगड़ाया।।
मुख से बोले जयसियाराम। पतितपावन सीताराम।।८४।।
बोले भरत बहुत पछताकर। पर्वत सहित बाण बैठाकर।।
तुम्हें मिला दूँ राजा राम। पतितपावन सीताराम।।८५।।
बूटी लेकर हनुमत आये।लखन लाल उठ शीष नवाये।।
हनुमत कंठ लगाये राम। पतितपावन सीताराम।।८६।।
कुम्भकरण उठकर तब आया। एक बाण से उसे गिराया।।
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम। पतितपावन सीताराम।।८७।।
दुर्गापूजा रावण कीनो। नौ दिन तक आहार न लीनो।।
आसान बैठ किया है ध्यान। पतितपावन सीताराम।।८८।।
रावण का व्रत खंडित किना। परम धाम पहुँचा ही दीना।।
वानर बोले जय सियाराम। पतितपावन सीताराम।।८९।।
सीता ने हरि दर्शन किना। चिंता शोक सभी तज दीना।।
हँस कर बोले राजा राम। पतितपावन सीताराम।।९०।।
पहले अग्नि परीक्षा देओ। पीछे निकट हमारे आओ।।
तुम हो पतिव्रता हे वाम। पतितपावन सीताराम।।९१।।
कर परीक्षा कंठ लगाई। सब वानर सेना हरषाई।।
राज्य बिभीषन दीन्हा राम। पतितपावन सीताराम।।९२।।
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सह बैठे रघुराया।।
तीर्थराज को लौटे राम। पतितपावन सीताराम।।९३।।
ऋषिवर सुन दर्शन को आए। स्तुति कर मन में हरषाए।।
गंगा तट पर आये राम। पतितपावन सीताराम।।९४।।
नन्दी ग्राम पवनसुत आये। भगत भरत को वचन सुनाए।।
लंका से आए हैं राम। पतितपावन सीताराम।।९५।।
कहो विप्र तुम कहाँ सेआए। ऐसे मीठे वचन सुनाए।।
मुझे मिला दो भैया राम। पतितपावन सीताराम।।९६।।
अवधपुरी रघुनन्दन आये। मंदिर -मंदिर मंगल छाये।।
माताओं को किया प्रणाम। पतितपावन सीताराम।।९७।।
भाई भरत को गले लगाया। सिंहासन बैठे रघुराया।।
जग ने कहा ,हैं राजा राम। पतितपावन सीताराम।।९८।।
सब भूमि विप्रों को दिनी। विप्रों ने वापस कर दीनी।।
हम तो भजन करेंगे राम। पतितपावन सीताराम।।९९।।
रघुपति राघव राजा राम। पतितपावन सीताराम।।
जयरघु नंदन जय सीताराम। जान वल्लभ सीताराम।।१००।।
धोबी ने धोबन धमकाई। राम चंन्द्रने यह सुन पाई।।
वन में सीता भेजी राम। पतितपावन सीताराम।।१०१।।
बाल्मीकि आश्रम में आई। लव और कुश जन्मे दो भाई।।
धीर बीर ज्ञानी बलवान। पतितपावन सीताराम।।१०२।।
अश्वमेघ फिर कीन्हो राम। सीता बिनु सब सूने काम।।
लव कुश वहाँ दई पहचान। पतितपावन सीताराम।।१०३।।
सीता राम बिना अकुलाई। भूमि से यह विनय सुनाई।।
मुझको अब दीजो विश्राम। पतितपावन सीताराम।।१०४।।
सीता भूमि माहीं समाई। देखी चिंता करी रघुराई।।
ब्रह्मचारी बन गये हैं राम। पतितपावन सीताराम।।१०५।।
राम राज्य में सब सुखपावें। प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें।।
चोरी जारी का नहीं है काम। पतितपावन सीताराम।।१०६।।
ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता। राज कीन्ह श्री लक्ष्मीकंता।।
फिर बैकुन्ठ पधारे राम। पतितपावन सीताराम।।१०७।।
अवधपुरी बैकुन्ठ सिधाई। नर नारी सबने गति पाई।।
शरनागत प्रतिपालक राम। पतितपावन सीताराम।।१०८।।
तेरी लीला प्रेम से गाई। मेरी विनय सुनो रघुराई।।
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम। पतितपावन सीताराम।।१०९।।
दोहा :यह माला पूरी हुई ;मनका एक सौ आठ।
मनोकामना पूर्ण हो ;नित्य करे जो पाठ।।
।।सियावर रामचन्द्र की जय।।
Ramayan Manka 108 Video
आपने अभी भजन "रामायण मनका १०८" के बोल (Lyrics) इस लेख में देखे हैं, इस भक्तिपूर्ण और आध्यात्मिक भजन से सबंधित अन्य भजन निचे दिये गये हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन भजन को भी देखें.
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