Shree Shyam Chaurasi-श्री श्याम चौरासी
*दोहा *
नागसुता सुत श्याम को ,सुमिरु बारम्बार।
खाटू वाले श्री श्याम ,हो सब जग के दातार।
काव्य कला जानू नहीं ,बिलकुल हूँ अज्ञान।
ज्ञान ध्यान मोहे दीजिए ,आकर कृपा निधान।
*दोहा *
गुरु-पद पंकज ध्यान धर ,सुमिरि सच्चिदानन्द।
श्याम चौरासी भजत हूँ ,रच चौपाई छन्द।
*चौपाई *
महर करो जन के सुखरासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। १।
प्रथम शीश चरणों में नाऊँ ,कृपा -दॄष्टि रावरी चाऊँ। २।
माफ़ सभी अपराध कराऊँ ,आदि कथा सुछन्द रच ,गाऊं। ३।
भक्त सुजन सुन कर हरषासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ४।
कुरु -पाण्डव में विरोध छाया ,समर महाभारत रचवाया। ५।
बली एक बर्बरीक आया ,तीन सुवाण साथ में लाया। ६।
यह लखि हरि को आई हांसी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ७।
मधुर वचन तब कृष्ण सुनाए ,समर -भूमि केहि कारण आए। ८।
तीन बाण धनु कन्ध सुहाए ,अजब अनोखा रूप बनाए। ९।
बाण अपार वीर सब ल्यासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। १०।
बर्बरीक इतने दल माहीं ,तीन बाण की गिनती नांहि। ११।
योधा एक -से -एक निराले ,वीर बहादुर ,अति मतवाले। १२।
समर सभी मिल कठिन मचासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। १३।
बर्बरीक ,मम कहना मानो ,समर -भूमि तुम खेल न जानो। १४।
भीष्म ,द्रोण ,कृप आदि जुझारा ,जिन से पारथ का मन हारा। १५।
तुम कहां पेश इन्हीं से पासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। १६।
बर्बरीक ,हरि से यों कहता समर देखना मैं हूँ चाहता। १७।
कौन बली ,रण -सूर निहारूं ,बीर बहादुर कौन -जुझारुं। १८।
तीन लोक त्रिबाण से मारुं ,हंसता रहूँ कभी नहिं हारुं। १९।
सत्य कहूँ ,हरि ,झूठ न जानो ,दोनों दल एक तरफ हों -मानो। २०।
एक बाण दल दोउ खपासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। २१।
बर्बरीक से हरि फरमावे ,तुम्हारी बात समझ नहीं आवे। २२।
प्राण बचाओ तुम घर जाओ ,क्यों नादानपना दिखलाओ। २३।
तुम्हारी जान मुफ्त में जासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। २४।
यदि विश्वास न तुम्हें मुरारी ,तो कर लीजै जांच हमारी। २५।
यह सुन ,कृष्ण बहुत हरषाये ,बर्बरीक से वचन सुनाये। २६।
मैं अब लेऊँ परीक्षा खासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। २७।
पात विटप के सभी निहारो ,बैंध एक शर से सब डरो। २८।
कह इतना ,इक पात मुरारी ,दबा लिया पग तले करारी। २९।
अजब रची माया अविनाशी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ३०।
बर्बरीक धनु बाण चढ़ाया ,जानी जाय न हरि की माया। ३१।
विटप निहार ,बली मुसकाया ,अजित ,अमर ,अहिलवती -जाया। ३२।
बली सुमरी शिव ,बाण चलासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ३३।
बाण बली ने अजब चलाया ,पत्ते बैंध विटप के आया। ३४।
गिरा कृष्ण के चरणों माहीं ,बींधा पात ,हरि चरण हटाई। ३५।
इन से कौन फते किमि पासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ३६।
कृष्ण बली से कहै -बताओ ,किस दल की तुम जीत कराओ। ३७।
बलि हार का दल बतलाया ,यह सुन ,कृष्ण सनका खाया। ३८।
विजय किस तरह पारथ पासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ३९।
छल करना तब कृष्ण विचारा ,बली से बोले नन्द कुमारा। ४०।
ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा ,कहना मानो बली हमारा। ४१।
हो निज तरफ नाम पा जासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ४२।
कहे बर्बरीक -कृष्ण ,हमारा ,टूट न सकता प्रण है करारा। ४३।
मांगे दान ,उसे मैं देता ,हारा देख सहारा देता। ४४।
सत्य कहूँ ,ना झूठ जरा सी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ४५।
बेशक वीर ,बहादुर तुम हो ,जंचते दानी हमें न तुम हो। ४६।
कहे बर्बरीक -हरि ,बताओ ,तुमको चाहिए क्या ,फरमाओ। ४७।
जो मांगे सो हम से ,पासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ४८।
बली अगर तुम सच्चे दानी ,तो मैं तुम से कहूँ बखानी। ४९।
समर -भूमि बलि देने खातिर ,शीश चाहिए एक बहादुर। ५०।
शीश -दान दे ,नाम कमसी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ५१।
हम ,तुम ,अर्जुन तीनों माहीं ,शीश -दान दे ,को बतलाई। ५२।
जिस को आप योग्य बतलावें ,वही शीश बलिदान चढ़ावें। ५३।
आवागमन मिटै चौरासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ५४।
अर्जुन नाम समर में पावे ,तुम बिन सारथी कौन कहावे। ५५।
मम सिर दान दियो भगवाना ,भारत देखन मन ललचाना। ५६।
शीश -शिखर गिरि पर धर वासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ५७।
शीश -दान बर्बरीक दिया है ,हरि ने गिरि पर धरा दिया है। ५८।
समर अठारह रोज हुआ है ,कुरु -दल सारा नाश हुआ है। ५९।
विजय -पताका पाण्डु फैरासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ६०।
भीम ,नकुल ,सहदेवा ,पारथ ,करते निज तारीफ अकारथ। ६१।
यों सोचे मन में यदुराया ,इनके दिल अभिमान है छाया। ६२।
हरि भक्तों का दुःख मिटासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ६३।
पारथ ,भीम आदि बलधारी ,से यों बोले गिरवर धारी। ६४।
किसने विजय समर में पाई ,पूछो सिर बर्बरीक से भाई। ६५।
सत्य बात सिर सभी बतासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ६६।
हरि सबके संग ले गिरिवर पर ,सिर बैठा था जहां शिखर पर। ६७।
जा पहुंचे झटपट नन्दलाला ,पुनि पूछा सिर से सब हाला। ६८।
सिरदानी है खुद अविनाशी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ६९।
हरि यों कहैं -सही फरमाओ ,समर-जीत है कौन बताओ। ७०।
बली कहै -मैं सही बताऊँ ,नहि पितु ,चाचा बली ,न ताऊ। ७१।
भागवत ने पाई शाबासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ७२।
चक्र सुदर्शन है बलदाई ,काट रहा था दल जिमि काई। ७३।
रूप द्रोपदी काली का धर ,हो विकराल ,कर में ले खप्पर। ७४।
भर-भर रुधिर पिये थी प्यासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ७५।
मैंने जो कुछ समर निहारा ,सत्य सुनाया हल है सारा। ७६।
सत्य वचन सुन कर यदुराई ,वर दीन्हा सिर को हरषाई। ७७।
श्याम रूप मम धाम पूजासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ७८।
कलि में तुमको श्याम कन्हाई ,पूजेंगे सब लोग लुगाई। ७९।
मन-कर्म -वचन से जो ध्यायेंगे ,मन -वांछित फल सब पायेंगे। ८०।
जन पतित सदगति पा जासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ८१।
निर्धन को धनवान बनाना ,पत्नी -गोदमें सुमन खिलाना। ८२।
सब भक्त है ,शरण तिहारी ,श्रीपति ,यदुपति ,कुन्ज -बिहारी। ८३।
सब सुखदायक आनन्द -रासी ,सांवल शा: खाटू के वासी। ८४।
*दोहा *
श्याम चौरासी है रची ,भक्त जनन के हेतु।
सेवक निशि-वासर पढ़े ,सकल सुमंगल देतु।।
लख चौरासी छूटिये ,श्याम चौरासी गाय।
अछत चार फल पाय कर ,आवागमन मिटाय।।
Shree Shyam Chaurasi Video
आपने अभी भजन "श्री श्याम चौरासी" के बोल (Lyrics) इस लेख में देखे हैं, इस भक्तिपूर्ण और आध्यात्मिक भजन से सबंधित अन्य भजन निचे दिये गये हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन भजन को भी देखें.
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