Ganesh Maha Mantra-गणेश महामंत्र

(ॐ गणेश )यह गणेशजीका महामंत्र  है। इस मंत्र के जप की बहुत बडी महिमा है। Ganesh Maha Mantra के जपकी विधि इस प्रकार है। दिनमें चार समय ,(प्रातः कल उठते ही ,दोपहर ; सायंकाल ,और रात्री )
चालीस बार चालीस दिन तक जो भी मनुष्य इस महामंत्र (ॐ गणेश )का भावभक्तिसे जप करेगा उस पर ॐ गणेश कि असीम कृपा रहेगी। एवम  मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
Ganesh Maha Mantra-गणेश महामंत्र

Ganesh Maha Mantra Lyrics

 ॐ गणेश महामंत्र 

मन्त्र मूर्ते विघ्न हरा। 

दूरिता नाशक कृपा करा।।

एकदंताय विदमहे। 

वक्रतुण्डाय धीमहि।।

तन्नो दंती प्रचोदयात।।

 ।।श्री गणेशायनमः।।

गजाननं भूतगणादि सेवितम कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षणम। 

उमासुतं शोक विनाशकारकम नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।

 वक्रतुण्ड महाकायं सूर्य कोटि समप्रभा। 

निर्विध्नं कुरुमेदेवं सर्व कार्येषु सर्वदा।।

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष ,रक्ष त्रेलोक्य रक्षक। 

भक्तनामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात।।

द्वै मातुर कृपासिन्धो ! षाण्मातुरथाग्रज।

वरद स्त्वं वरन्देहि वांछितं वाच्छितार्थद।।

   विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय ,लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।

नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय ,गौरी सुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदक प्रिय। 

अविघ्नं कुरु मे देव ,सर्व कार्येषु सर्वदा।।

(१ )

मंगल -विधानके लिये 

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः। 

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः।।

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः। 

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत।।

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं। 

न च विघ्नं भवेत कचित।।

(२ )

सर्वविध रक्षाके लिये 

गणेशन्यास 

श्री गणेशाय नमः।।

आचम्य प्राणायामं कृत्वा। 

दक्षिणहस्ते वक्रतुण्डाय नमः। 

वामहस्ते शूर्पकर्णाय नमः। 

ओष्ठे विघ्नेशाय नमः। 

सम्पुटे गजाननाय नमः। 

दक्षिणपादे लम्बोदराय नमः। 

वामपादे एकदन्ताय नमः। 

शिरसि एकदन्ताय नमः। 

चिबुके ब्रह्मणस्पतये नमः। 

दक्षिणनासिकायां विनायकाय नमः। 

वामनासिकायां ज्येष्ठराजाय नमः। 

दक्षिणनेत्रे विकटाय नमः। 

वामनेत्रे कपिलाय नमः। 

दक्षिणकर्णे धरनीधराय नमः।

वामकर्णे आशापुरकाय नमः। 

नाभौ महोदराय नमः। 

हृदये धूम्रकेतवे नमः। 

ललाटे मयुरेशाय नमः। 

दक्षिणबाहौ स्वानन्दवासकारकाय नमः।

वामबाहौ सच्चित्सुखधाम्ने नमः। 

(३ )

 समस्त कामनाओंकी सिद्धिके लिये 

गणेशाष्टक

सर्वे ऊचुः 

यतोनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते। 

यतो भाति सर्व त्रिधा भेदभिन्नं सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता। 

तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतो वह्विभानुद्भवो भुर्जलं च यतः सागराश्चद्र्मा व्योम वायुः। 

यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङधाः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतो दानवाः किंनरा यक्षसङघा यतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च। 

यतः पक्षिकीटा यतो विरुधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतः सम्पदो भक्तसंतोषिकाः स्युः। 

यतो विघ्ननाशो यतः कार्यासिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः। 

यतः पुत्रसम्पद यतो वाञ्छितार्थो यतो भक्तविघ्नास्तथानेकरुपाः। 

यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतोनन्तशक्तिः स शेषो वभूव धराधारणे नेकरूपे च शक्तः। 

यतोनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति। 

परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।

(४ )

विघ्ननाशके लिये 

श्रीराधिकोवाच 

परं धाम परं ब्रह्म परेशं परमीश्वरम। 

विघ्ननिघ्नकरं शान्तं पुष्टं कान्तमनन्तकम।।

सुरासुरेन्द्रैः सिव्धेन्द्रैः स्तुतं स्तौमि परात्परम। 

सूरपद्मदिनेशं च गणेशं मङ्गलायनम।।

इदं स्तोत्रं महापुण्यं विघ्नशोकहरं परम्। 

यः पठेत प्रातरुत्थाय सर्वविघ्नात प्रमुच्यते।।

 यह उत्तम स्त्रोत्र महान पुण्यमय तथा विघ्न और शोकको हरनेवाला है। जो प्रातःकाल उठकर इस स्त्रोत्रका पाठ करता है ,वह सम्पूर्ण विघ्नोंसे विमुक्त हो जाता है। 

(५ )

संकटनाशके लिये 

संकष्टनाशनस्त्रोत्रम 

नारद उवाच 

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम। 

भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये।।

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम। 

तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। 

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकमं। 

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। 

न च विघ्नमयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम। 

पुत्रार्थी लभते पुत्रान मोक्षार्थी लभते गतिम।।

जपेदगणपतिस्त्रोत्रं षङभिर्मासैः फलं लभेत। 

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत। 

तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।।

 श्री नारद कहते हैं। इस गणपतिस्त्रोत्रका नित्य जप करे। जपकर्ताको छः महीनेमें अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करनेसे मनुष्य सिद्धिको प्राप्त कर लेता है ,इसमें संशय नहीं है।

जो इस स्त्रोत्रको लिखकर आठ ब्राह्मणोंको अर्पित करता है ,उसे गणेशजीकी कृपासे सम्पूर्ण विद्याकी प्राप्ति होती है। 

(६ )

चिन्ता एवं रोग -निवारण के लिये 

मयूरेशस्त्रोत्रम 

ब्रह्मोवाच 

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा। 

मयाविनं दुर्विभाव्यं मयुरेशं नमाम्यहम।।

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम। 

गुणातीतं गुणमयं मयुरेशं नमाम्यहम।।

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया। 

सर्वविघ्नहरं देवं मयुरेशं नमाम्यहम।।

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम। 

नानायुधधरं भक्त्या मयुरेशं नमाम्यहम।।

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम। 

सदसद्वयक्तमव्यक्तं मयुरेशं नमाम्यहम।।

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम। 

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयुरेशं नमाम्यहम।।

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम। 

भक्तानन्दकरं नित्यं मयुरेशं नमाम्यहम।।

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम। 

समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयुरेशं नमाम्यहम।।

सर्वज्ञाननिहनन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम। 

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयुरेशं नमाम्यहम।।

 अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम। 

अनन्तविभवं विष्णुं मयुरेशं नमाम्यहम।।

मयूरेश उवाच 

इदं ब्रह्मकरं 'स्तोत्रं 'सर्वपापपरनाशनम। 

सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम।।

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात। 

अधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम।।

मयुरेशने कहा -यह स्तोत्र ब्रह्मभावकी प्राप्ति करनेवाला और समस्त पापोंका नाशक है। मनुष्योंको सम्पूर्ण मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाला तथा सारे उपद्रर्वोका शमन करनेवाला है। सात दिन इसका पाठ किया जाय तो कारागारमें पड़े हुए मनुष्योंको भी छुड़ा लाता है। यह शुभ स्तोत्र आधि (मानसिक चिन्ता )तथा व्याधि (शरीरगत रोग )को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है। 

(७ )

पुत्रकी प्राप्तिके लिये 

संतानगणपतिस्तोत्रम 

नमोस्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च। 

सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च।

गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते।

गोप्याय गोपिताशेषभुवनाय चिदात्मने

 विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने।।

एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः। 

प्रपन्नजनपालय प्रणतार्तिविनाशिने।।

शरणं भव देवेश संततिं सुद्दढां कुरु। 

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक।।

ते सर्वे तव पूजार्थे निरताः स्युर्वरो मतः। 

पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम।।

। इति संतनगणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम

(८ )

लक्ष्मीप्राप्तिके लिये 

ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने। 

दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने।।

लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम। 

अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम। 

ॐ  ह्वाँ ह्वी ह्वूँ ह्वैं ह्वौं ह्वः हेरम्बाय नमो नमः। 

सर्वसिद्धिप्रदोसित्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव

चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः। 

सिन्दूरारुणवस्त्रैश्व पूजितो वरदायकः।।

इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः। 

तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्वत्ति।।

 

आपने अभी "गणेश महामंत्र" के बोल (Lyrics) इस लेख में देखे हैंइस आध्यात्मिक और शक्तिशाली मंत्र से सबंधित अन्य मंत्र निचे दिये गये हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन मंत्र को भी देखें.

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