Shri Khatu Shyam Mangal Kavach-श्री खाटु श्याम मंगल कवच

श्री खाटू श्याम मंगल कवच का जाप करने से धार्मिक और मानसिक रूप से सुख ,सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस कवच के जाप से खाटू श्याम बाबा की कृपा प्राप्त होती है। Shri Khatu Shyam Mangal Kavach वास्तव में श्री खाटू श्याम बाबा की पूजा ,आराधना और स्मरण के द्वारा उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है। इस कवच का जाप करने से शुभ और सकारात्मक ऊर्जा ऊर्जित होती है समस्याओं ,कष्टों और परेशानियों से बचाव होता है। यह कवच भक्ति ,ध्यान ,मनन  जाप के माध्यम से श्री खाटू श्याम बाबा का आशीर्वाद पाने में सहायता करता है। 
Shri Khatu Shyam Mangal Kavach-श्री खाटु श्याम मंगल कवच

Shri Khatu Shyam Mangal Kavach

सिद्धिकारक 

श्री श्याम मंगल कवच 

(कबीर वाणी तर्ज पर दोहावली )

मंगल कवच है श्याम का ,सिद्धि कारक जाप। 

इसको जो धारण करे ,मिटते सब संताप।।१।।

खाटू वाले श्यामजी ,लखदातारी देव। 

भगतों के संकट हरे ,रक्षा करे सदैव।।२।।

 अहिलवति सुत लाडलो ,बर्बरीक है नाम। 

सूर्यवंश के सूरज है ,खाटू वाले श्याम।।३।।

भारत राजस्थान में ,खाटू नगरी धाम। 

पावन धरती वो बनी ,जहाँ बिराजे श्याम।।४।।

पाण्डव कुल में भीमसेन ,हुए अति बलवान। 

उनके वंशज श्याम है ,सुनिये धर के ध्यान।।५।।

 पहली रानी भीम की ,अहिलवति है नाम। 

नागलोक की सुन्दरी ,कोख से जन्मे श्याम।।६।।

बर्बरीक बेटा ,हुआ ,अति बलशाली वीर। 

 शीश दान जिसने दिया ,ऐसा था रणधीर।।७।।

कलिकाल का देव है ,घर घर जलती ज्योत। 

श्याम नाम के जाप से ,मन उजियारा होत।।८।।

दूजी रानी भीम की ,नाम हिडिम्बा होय। 

राक्षस कुल की कन्या का ,ब्याह भीम संग होय।।९।।

दोनों के बेटा हुआ ,घटोत्कच बलवान। 

जिसने जन्मा एक वीर ,सुहृदय था नाम।।१०।।

घने-घने सुहृदय के ,लम्बे लम्बे बाल। 

बर्बरीक भी जिस कारण ,कहलाया वो लाल।।११।।

शक्ति की आराधना ,करी थी जिसने घोर। 

देवी शक्ति पायकर ,दम्भ से हुआ विभोर।।१२।।

रणभूमि में कृष्ण से ,बोला गर्व की बात। 

श्री कृष्ण ने चक्र से ,धड़ से सिर दिया काट।।१३।।

बर्बरीक दोनों हुए ,इक पोता इक पूत। 

हारे का साथी बान ,अहिला भीम का पूत।।१४।।

अहिलवति के गर्भ में ,आये श्याम सुजान। 

माता कुन्ति से मिलने ,भीम किये प्रस्थान।।१५।।

वन में अकेली छोड़ कर ,चले भीम नीज देश। 

अहिलवति को तब लगी ,मन में भारी ठेस।।१६।।

शिव शंकर का ध्यान धर ,जल सीचें दिन रैन। 

गोद हरी उसकी हुई ,आया मन को चैन।।१७।।

कार्तिक शुक्ल एकादशी ,जन्म लिए बलवान। 

नारदजी ने बर्बरीक ,रखा जिनका नाम।।१८।।

 छोटे से उस वीर की ,महिमा बड़ी महान। 

खेल रचाये शेर संग ,वो बालक नादान।।१९।।

शिव की नित्य पूजा करे ,माता के संग लाल। 

शिव का तब दर्शन मिला ,बालक हुआ निहाल।।२०।।

योगी रूप में जगपति ,पार्वती है संग। 

गोदी में गजराज हैं ,बड़े निराले ढंग।।२१।।

गल सर्पो का हार हैं ,चढ़ा भंग का रंग। 

स्तुति गावे देव गण ,हुआ देख के दंग।।२२।।

हर हर महादेव की ,गूँजे जय जय कार। 

साज सुरीले बज रहे ,अद्भुत दॄश्य अपार।।२३।।

अहिला बन करके गुरु ,देवे उसको सीख। 

बेटे को समझा रही ,क्षत्री धर्म की रीत।।२४।।

निर्बल को ना ताड़ना ,देना उनका साथ। 

हारे को अपना लियो रखना सिर पै हाथ।।२५।।

भिक्षुक की झोली भरो ,देना उसको दान। 

याचक को देना पड़े ,चाहे तन और प्राण।।२६।।

अग्नि देव से अर्ज करी ,रखना मेरी लाज। 

धनुष बाण की लाल को ,शिक्षा दूँगी आज।।२७।।

 धनुष मांगा आकाश से ,रखा उसका मान। 

अग्नि देव उससे कहे ,धारो हे बलवान।।२८।।

 तीन बाण है दिग विजय ,शिव शंकर के पास। 

उनकी तुम पूजा करो ,पूरण होगी आस।।२९।।

बर्बरीक ने भोले की ,करी तपस्या घोर। 

देवलोक को छोड़ शिव ,चलें भगत की और।।३०।।

वचन भरा कर वर दिये ,पूछे मन की बात। 

बालक तुम देना सदा ,हारे का ही साथ।।३१।।

तीन बाण देकर कहे ,धारण कर लो आज। 

निर्बल की रक्षा करो ,रखना उनकी लाज।।३२।।

 पारंगत माँ ने किया ,हुआ वीर बलवान। 

तीन लोक में ना हुआ ,दूजा वीर महान।।३३।।

नारद आये एक दिन ,बोले हे बलवान। 

कौरव पाण्डव रच रहे ,महाभारत संग्राम।।३४।।

कौरव सेना है बड़ी ,पाण्डव कुल में पॉँच। 

श्री कृष्ण हैं साथ में झूट नही है साँच।।३५।।

बालियों में तुम भूप हो ,सुनलो मेरी बात। 

महाभारत संग्राम में ,निर्बल का दो साथ।।३६।।

महाभारत देखने तभी ,मचल उठा मन मोर। 

माँ आज्ञा ले बर्बरीक ,चला समर की और।।३७।।

अन्तर्यामी कृष्ण है ,नारायण अवतार। 

लीला धर छलिया बड़ा ,लीला अपरम्पार।।३८।।

ब्राह्मण का वो वेष धर ,चले वीर की और। 

परिचय पूछे वीर का ,कहो तुम्हारा ठोर।।३९।।

निज परिचय दे बर्बरीक ,बोले मन की बात। 

महाभारत देखन चला ,हारे का दूँ साथ।।४०।।

तीन बाण से क्या लड़े ,विप्र करे उपहास।

जाओ बालक लौट कर ,अपनी माँ के पास।।४१।।

तीन बाण है दिग विजय ,मत करना उपहास। 

एक बाण से सृष्टि का ,कर सकता हूँ नाश।।४२।।

पीपल का हर एक पत्ता ,चला के तुम एक तीर। 

बीन्ध दिखाओ तो मानूं ,तुमको मै रणवीर।।४३।।

पैरों के नीचे दबा ,इक पत्ता भगवान। 

बालक से बोले प्रभु ,थामो तीर कमान।।४४।।

 माता को प्रणाम कर ,लियाधनुष को तान। 

सारे पत्ते छेदहरि के ,चरण पड़ा वो बाण।।४५।।

रूप चतुर्भूज धार के ,बोले श्री भगवान। 

तीन लोक में तुझ जैसा ,दूजा ना बलवान।।४६।।

धन्य धन्य वो मात है ,तुझसा जन्मा लाल। 

उसकी कोख से जन्म ले ,तू तो हुआ निहाल।।४७।।

रणभूमि एक वीर की ,बलि मांगती आज। 

पाण्डव दल की जीत का ,तुझे बताऊँ राज।।४८।।

गुरु दक्षिणा में दे दो ,अपने शीश का दान। 

बर्बरीक सन्मुख बने ,याचक कृपा निधान।।४९।।

हँस कर बालक यूं कहे ,दूँगा शीश का दान। 

 एक तमन्ना बस यही ,देखूँ युद्ध महान।।५०।।

वचन दिया भगवान ने ,अमर रहेगा शीश। 

दिव्य ज्योति से तुम सदा ,देखोगे हर चीज।।५१।।

हँसते हँसते तब दिया ,अपने शीश का दान। 

तीन लोक में हो रहा ,श्याम नाम गुणगान।।५२।।

कलयुग के तुम देव हो ,पूजे जग संसार। 

घर -घर में डंका बजे ,होवे जय -जयकार।।५३।।

आज तुझे मैं दे रहा ,अपने सारे नाम। 

पूजेगी जगती तुम्हे ,देव दयालु श्याम।।५४।।

चन्दन खुशबू से बढे ,शोभा तेरी अपार। 

हे बलवानी तुम बनो ,लीले के असवार।।५५।।

आज विधाता ने किखा। कलयुग तेरे नाम। 

भगतों के पल में बने ,सारे बिगड़े काम।।५६।।

आशीष देकर शीश को खम्ब पे दिये बिठाय। 

दिव्य ज्योति देकर प्रभु ,रण भूमि में आये।।५७।।

अर्जुन के बन सारथी ,रथ हाँके भगवान। 

दोनों की रक्षा करे ,वीर बलि हनुमान।।५८।।

पाण्डव दल की विजय हुई ,छाया था उल्लास। 

विजय के मद में चूर सब ,भूले होश हवास।।५९।।

अपने मुख से अपना ही ,गान करे हर वीर। 

श्री कृष्ण तब यूँ कहे ,सुनलो धर के धीर।।६०।।

एक वीर ने देखा है ,निज आँखों संग्राम। 

चलो पूछ लें युद्ध में ,क्या-क्या आया काम।।६१।।

शीश का दानी यूँ कहे ,सुनिये धर के गोर। 

संहारक थे एक ही ,लीलाधर चहूं और।।६२।।

चक्र चले लाशें बिछे ,गिरे जान पर जान। 

खप्पर भर काली करे ,वहाँ रक्त का पान।।६३।।

सारी माया कृष्ण की ,कृष्ण करे सो होय। 

कठपुतली तुम सब बने ,नाच अँगुल पे होय।।६४।।

देव मुनिजन को प्रभु ,उस क्षण लिए बुलाय। 

शीश के दानी की कथा ,सबको देई सुनाय।।६५।।

निर्मल जल की धार में ,चला जो बहकर शीश। 

देव मुनिजन ने दिये ,लाखों ही आशीष।।६६।।

कलि काल में एक दिन ,प्रगटे खाटू धाम। 

कलयुग के ये देव हैं ,खाटू वाले श्याम।।६७।।

धन्य ढूंढारा देश है ,खाटू नहर सुजान। 

अनुपम छवि श्री श्याम की ,दर्शन से कल्याण।।६८।।

 फागुन शुक्ल में भरे ,मेला अति महान। 

दर्शन को श्री श्याम के ,जाये सकल जहान।।६९।।

एकादश की रात में ,कीर्तन भारी होय। 

बारस के दिन ज्योत ले ,दर्श करे सब कोय।।७०।।

खीर चूरमा श्याम का ,सबसे प्यारा भोग। 

अत्तर ,केशर से सदा ,महकाते हैं लोग।।७१।।

बारह महीनों ही चढ़े लाखों लाख निशान। 

सेवक जन जाकर करे ,बाबा का गुणगान।।७२।।

साचाँ परचा श्याम का ,साचाँ है दरबार। 

एक बार जो भी गया ,जाये बारम्बार।।७३।।

मकराने का है बना ,मंदिर बहुत विशाल। 

डयोढ़ी पर रक्षा करे ,माँ अंजनी का लाल।।७४।।

मुख पर भारी तेज है ,चमके सदा ललाट। 

सन्मुख गोपी नाथजी ,दर्शन से हो ठाठ।।७५।।

श्याम कुण्ड पावन जगह ,प्रगटे जहाँ पे श्याम। 

जिसमें गोता खायकर ,बनते बिगड़े काम।।७६।।

भक्त शिरोमणी श्याम के ,श्याम बहादुर नाम। 

आलूसिंह वो भक्त हुए ,पाये जो श्री श्याम।।७७।।

श्याम बगीची में करे ,श्याम सदा ही विहार। 

जहाँ के फूलों से होवे ,बाबा का श्रृंगार।।७८।।

दो हजार सत्तावन सन ,अश्विन ,शुक्ला तीज। 

श्याम कवच पूरा किया ,"हर्ष "भगत ने रीझ।।७९।।

महिमा खाटू श्याम की ,गावे जो दिन रात। 

श्याम देव देवे सदा ,उस प्राणी का साथ।।८०।।

राजे नियम से स्न्नान कर ,धुप-दिप धर ध्यान। 

श्याम कवच का जाप कर ,निश्चय हो कल्याण।।८१।।

।।खाटू वाले श्याम दातार की जय।।


Shri Khatu Shyam Mangal Kavach Video


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