Brihaspativar Vrat Katha-बृहस्पतिवार व्रत कथा
हिन्दू सम्प्रदाय में प्रत्येक व्रत और त्यौहार का बहुत महत्व होता है। व्रत रखने से हम अपने जीवन को सुखी और विशेष बना सकते हैं। Brihaspativar Vrat Katha भी इनमें से एक है जो बहुत प्रचलित है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। यह व्रत हर गुरुवार को रखा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने से मनुष्य को धन, समृद्धि, सुख और संतान प्राप्त होती हैं।इस दिन वृहस्पतेश्वर महादेवजी का पूजन होता हैं। दिन में एक समय भोजन करें। पीले व्रस्त धारण करे तथा पोले पुष्पों का सेवन करें। भोजन भी चने की दाल आदि का होना चाहिये ,नमक नहीं खाना चाहिए। पीले रंग के फूल ,चने की दाल ,पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजन करना चाहिए। इस व्रत में केले का पूजन भी किया जाता है। पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए। इस व्रत के करने से वृहस्पतिजी अति प्रसन्न होते हैं ,धन और विद्या का लाभ होता है ,स्त्रियों के लिए यह व्रत अति आवश्यक है।
Brihaspativar Vrat Katha
(बृहस्पतिवार व्रत कथा )
व्यास जी बोले -एक समय नैमिषारण्य वन में शोनक आदि मुनि एकत्रित होकर पुराण के तत्वों के उत्तम ज्ञाता व्यासजी के प्रधान शिष्य श्री सूतजी से पूछने लगे ,हे सूत !व्रत करने से क्या फल मिलता है ?कोई ऐसा व्रत बताओ जिनके करने से मृत्युलोक के प्राणी धन ,पुत्र ,विद्या का लाभ कर सकें। यह आप सब अच्छी प्रकार से कहें इसको सुनने की हमारी इच्छा है।
श्रीसुतजि बोले --हे मुनीश्वरो ! तुमने बहुत सुन्दर बात पूछी है ,मैं तुम्हारे लिये धन ,पुत्र ,विद्या देनेवाला उत्तम व्रत है सो कहता हूं। आप ध्यान देकर सुनो। मनुष्य भक्ति ,और श्रद्धा -युक्त होकर वृहस्पतेश्वर का व्रत तथा पूजन करते हैं तो गुरु ग्रह द्व्रारा होने वाले अनिष्ट नष्ट होते हैं ,स्थायी सुख तथा शान्ति प्राप्त होती है धन विद्या का लाभ होता है।
शौनक मुनि बोले --हे सूत ! आपने गुरुवार का व्रत तो कह दिया ,परन्तु व्रत का फल है ,यह व्रत कैसे करना चाहिए और यह व्रत सवसे पूर्व कौन ने किया ,उसकी क्या कथा है ?सूतजी बोले --हे मुनियों ! यह व्रत दुःख और शोक का नाश करने वाला है। आध्यत्मिक ,आधिदैविक ,आधिभौतिक समस्त तापों का नाश करने वाला है। मनुष्य भक्ति श्रद्धायुक्त होकर धर्म में तत्पर होकर वृहस्पतिवार के दिन व्रत करे। प्रातः काल उठ कर स्नान ,शौच आदिसे निवृत हो कर श्री वृहस्पतेश्वर का पूजन करे ,व्रती मनुष्य को पीले व्रस्त धारण करने चाहिये।। पूजन में पीले फूल ,चना की दाल ,पीले चन्दन से पूजन करना चाहिये। पूजन के बाद भक्ति,श्रद्धा -पूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिये। दिन रात चौबीस घण्टे में एक समय भोजन करना चाहिये। भोजन में पीले रङ्ग के फल ,चना की दाल ,बेसन आदि लेना चाहिये ,इस दिन नमक नहीं खाना चाहिये ,इस व्रत के प्रभाव से गुरुदेव प्रसन्न होते हैं ,धन ,धान्य ,विद्या का लाभ होता है ,पूजन तथा कथा के उपरान्त बृहस्पतेश्वर या केला की आरती करनी चाहिये ,मन क्रम ,वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो वह वर बृहस्पतिदेव से माँगना चाहिये भगवान गुरु-देव अवश्य उसका इछाओं को पूर्ण कर देते हैं। स्त्रियों के लिये यह व्रत विशेष लाभदायक है।
सबसे पूर्व जिसने गुरदेव का व्रत किया उसकी कथा को कहते हैं। काशी नगर में एक अत्यन्त प्रतापी राजा राज्य करते थे ,इन राजा का नाम चन्द्रभानु था ,राजा देवालय मन्दिरों के दर्शन करने जाता था ,ब्राह्मण ,साधु ,गाय की सेवा किया करता था ,उसकी धर्मपरायणता ,न्याय व दानशीलता का यश सारे भारतवर्ष में फैल रहा था। उसके दरवाजे से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता था। राजा प्रत्येक गुरुवार को व्रत करता था प्रत्येक दीन ,दुःखीं गरीब की सहायता करता था ,परन्तु महारानी ठीक इसके विपरीत बुरे स्वभाव की थी ,उसे दान ,धर्म ,पूजा कथा तथा ब्राह्मण सेवा से कोई रूचि नहीं थी। वह न व्रत ही करती न किसी को कुछ दान ही देती थी तथा राजा के लिये ऐसा करने से मना किया करती थी।
एक दिन की बात है कि ,राजा शिकार खेलने के लिये जंगल में गये हुये थे ,घर पर रानी और दासी थीं। उस समय गुरुदेव एक साधु का रूप धारण करके उस राजा के दरवाजे पर मांगने आये तथा रानी से कुछ दान के लिये बोले तो रानी कहने लगी --हे साधु महाराज ! भीख माँगने के लिये तो मेरे पतिदेव के ही पास जाओ ,मैं तो दान पुण्य से तंग आगई हूँ मुझसे घर -कार्य ही पूर्ण नहीं होता है। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत हैं ,अगर यह धन नष्ट हो जावे तो आराम से सो सकूँ ,आप यहां से चले जावें नहीं तो सिपाहियों से धक्के दिलवा कर निकलवा दूंगी।
साधु बोले हे देवी ! तुम तो बहुत ही विचित्र हो। सन्तान और धन से कोई भी दुःखी नहीं होता है ,इसको सभी चाहते हैं ;पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है ,अगर आपके पास धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ ब्राह्मणों को दान दो। धर्मशाला ,कुआ ,तालाब ,बावड़ी ,बाग आदि निर्माण कराओ ,निर्धन मनुष्यों की कुआरी कन्याओं का विवाह करवाओ। सुन्दर-सुन्दर मन्दिर बनवाकर मन्दिर को प्रबन्ध भोग सेवा प्रेमपूर्वक कराओ। भगवान धन इसलिए देते हैं कि यह पुण्य कार्य करे जो ऐसा नहीं करता वह अपराधी है दण्डनीय है। रानी बोलीं साधुजी ! मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं और मनुष्यों को दान दूँ तथा जिसके रखने उठाने में सारा समय बरबाद हो जावे। साधु ने कहा हे देवी ! आपकी ऐसी इच्छा है तो ऐसा ही होगा ,मैं तुमसे कहता हूं वैसा ही करना। वृहस्पतिवार के दिन घर को लीपना ;अपने केशों को धोते हुये स्नान करना ,कपड़े धोबी के यहाँ धुलाने को डालना राजा से कहना कि वह हजामत बनवाए ,इस प्रकार से सात गुरुवार करना ,आपकीं इच्छा पूर्ण होजावेगी। ऐसा कहकर साधुजी महाराज वहाँ से अन्तर्ध्यान होगये।
रानी ने तीन वृहस्पतिवार ही किया था कि सम्पूर्णं धन नष्ट होगया , भोजन के लिये धन न रहा राजा का राज्य व ठाठ -बाट नष्ट हो गया ,भोजन के लिए दोनों समय तरसने लगे। राजा रानी से कहनेलगा कि मैं परदेश को जाता हूँ क्योंकि यहाँ पर मुझे सभी लोग जानते हैं कोई कार्य भी नहीं कर सकता हूं। देश में चोरी परदेश में भीख बराबर होती है। ऐसा कह राजा परदेश को चला गया। रानी और दासी दोनों ही बहुत दुःखी रहने लगीं ,किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर रह जाती ,एक दिन रानी ने अपनी दासी से कहा हे दासी ! पास के नगर में मेरी बहन रहती है ,वह बहुत ही धनवान है। इस कारन तू उसके पास जाकर कुछ बेझर माँग कर ले आ जिससे कुछ समय गुजर जावेगा। जब दासी रानी की छोटी बहन के घरगई तो उसने देखा कि वह पूजन कर रही है। दासी ने रानी का सन्देश कह सुनाया ,रानी ने कुछ उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह उस समय वृहस्पतिवार के व्रत की कथा सुन रही थी ,इस प्रकार जब दासी को कोई उत्तर नहीं मिला ,तो वह बहुत दुखी हुईऔर लौटकर रानी के पास आकर बोली हे रानी आपकी बहन तो बड़ी आदमन है वह छोटे मनुष्यों से बात भी नहीं करतीं इसलिए जब मैंनेउससे कहा तो उसने किसी प्रकार काकोई उत्तर नहीं दिया। मैं लौट आई. रानीं बोली दासी ! इसमें उसका कोई दोष नहीं है ,जब बुरे दिन आते हैं तो कोई सहारा नहीं देता है। अच्छे बुरे अपने और पराये का पता आपत्ति काल में ही लगता है। जैसी ईश्वर की इच्छा होगी वही होता। यह सब हमारे भाग्य का दोष है। जब उस रानी ने देखा कि मेरी बहन की दासी आई थी परन्तु मैं उससे नहीं बोली इससे वह बहुत दुःखी हुई होगी यह सोच विष्णु भगवान का पूजन समाप्त कर अपनी बहन के घर को चलदी और अपनी बहन से बोली बहन ! तुम्हारी दासी गई थी परन्तु मैं वृहस्पतिवार कीं कथा सुन रही थी ,जब तक कथा होती है तब तक न उठते है और न बोलते हैं इस लिए मैं नहीं बोली थी। कहो दासी क्यों गई थी। रानी बोली बहन हमारे घर अनाज नहीं है ,इस कारन मैंने दासी को तुम्हारे पास अनाज लेने को भेजा था। रानी बोली बहन ! वृहस्पति भगवान सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं ,देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखाहो ,रानी अमनी बहन के बचनों को सुनकर के अंदर गई तो उसे एक घड़ा अनाज का भरा मिल गया तो रानी और दासी बहुत ही प्रसन्न हुईं और दासीं बोली हे रानी ! देखो वैसे हमको जब अन्न नहीं मिलता है तो हम रोज ही व्रत करते हैं अगर इससे वृहस्पतिवार के ब्रत की विधि पुछलि जावे तो उसे हम भी किया करें। तब उस रानी ने अपनी बहिन से पूछा कि बहन ! वृहस्पतिवारका व्रत कैसे करना चाहिये ? रानी बोली बहन ! गुरुवार के दिन व्रत रखे चना की दाल ,गुड़ ,मनुक्का से विष्णु भगवान का पूजन करे ,दीपक जलाये पीला भोजन करे ,इस प्रकार करने से गुरु भगवान प्रसन्न होते हैं अन्न ,पुत्र ,धन देते हैं ,तथा मनोकामना पूर्ण करते हैं। रानी और दासी दोनों ने गुरु भगवान के व्रत का निश्चय किया ,सात रोज बाद जब वृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर दासी ,चना की दाल तथा गुड़ बीन लाईतथा केले का पूजन किया तथा वृहस्पतिवार की कथा सुनी भगवान की कृपा से उन्हें भोजन भी मिल गया ,अब रानी और दासी प्रत्येक वृहस्पतिवार को गुरु का पूजन कर व्रत कर विष्णु भगवान का पूजन करने लगीं। वृहस्पति भगवान की कृपा से रानी और दासी पर काफी धन होगया रानी पहले की तरह फिर आलस्य करने लगी दासी बोली देखो रानी पहले इसी प्रकार आलस्य थीं। धन रखने से कष्ट होता था इस कारण सभी धन नष्ट होगया। अब गुरु भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ तो फिर आलस्य करती हो। मुसीबतों से धन प्राप्त किया है इसलिये हमें दान पुण्य करना चाहिये। जिससे तुम्हारा यश फैलेगा तथा स्वर्ग प्राप्त होगा।
रानी ने पुण्य कर्म प्रारम्भ कर दिये चारों और यश फैलने लगा। एक दिन रानी और दासी विचार करने लगी कि हम तो यहाँ पर कुशलपूर्वक हैं न जाने राजा किस प्रकार से होंगे। उनकी कोई खबर नहीं मिली। पूजन के अन्त में गुरु भगवान से प्रार्थना की हे प्रभो ! हमारे राजा को हमसे मिलादो। आपकीं बहुतही कृपा होगी ,उसी रात्रिको भगवान ने स्वप्नमें राजा से कहा हे राजा ! उठ-उठ तेरी रानी तुझको याद करती है। प्रातः काल राजा उठा और अपने नगर के लिये चल दिया ,राजा जब काशी के निकट पहुँचा उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ ,नगर में पहले से अधिक तालाब और कुये हैं बहुत सी नई धर्मशाला बन गई हैं ,राजा ने नगर के लोगों से पूछा कि यह किसके बाग और धर्मशाला हैं तो नगर के लोग कहते थे यह सब रानी और बाँदी के हैं। जब रानी और दासी को राजाके आने का समाचार मिला तो बड़ी प्रसन्न हुईं और अनेक प्रकार से महल को सुसज्जित करने लगीं। अत्तर के छिड़काव कराये महल में अनेक प्रकार की सामिग्री लगवाईं। अब तो रानी ने अपना श्रृंगार बड़े सुन्दर ढंग से किया श्रृंगार करके फिर रानी ने दासी को मिलिवाने के लिये भेजा जैसे ही दासी पहुँची राजा की सबारी मुख्य बाजारों में होती हुई राजमहल में आई महलमें जाकर राजा ने क्रोध से तलवार निकाल और पूछा कि यह धन कैसे प्राप्त हुआ तो दासी ने कहा यह सब वृहस्पतिदेव के व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ।
अब राजा वृहस्पति के दिन व्रत करने लगे तथाँ विष्णु भगवान का पूजन करते थे वृहस्पति देव की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा सुखमय जीवन व्यतीत कर अन्त में विष्णु भगवान के लोक को प्राप्त हुए।
*इति श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा *
।। श्री बृहस्पति जी की आरती ।।
जय बृहस्पति देवा स्वामी जय बृहस्पति देवा।
अपने जन के संकट दूर करो देवा ।।जय.।।
पीत भोग पीतांबर भाल तिलक सोहे।
पीत पुष्प गल माला पीताम्बर सोहे ।।जय.।।
गुरुवार प्रिय मानत सुख सम्पत्ति दाता।
तेरे ध्यान धरके मोक्ष पाय जाता ।।जय.।।
मैं मूरख अज्ञानी जानूं नहिं पूजा तेरा।
जो कुछ त्रुटि हो प्रभु क्षमा करो मेरी ।।जय.।।
तेरे द्वारे आया शरण पड़ा तेरी।
अपने जन को उबारो लाज रखो मेरी ।।जय.।।
बृहस्पतिजी की आरती जो कोई जन गावे।
व्यास वृद्धि सिद्धि सुख सम्पत्ति जीभर के पावे।
जय बृहस्पति देवा स्वामी जय बृहस्पति देवा।।
Brihaspativar Vrat Katha Video
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